शनिवार, १ ऑगस्ट, २०२०

कविता

तुम जब खाना पकाती हो
तब उसकी महक से
भर जाता है सारा घर
क्या पक रहा है आज स्पेशल?
पूछते है पडोसी आते जाते वक्त
मैं थका हुआ आ जाता हूँ आफिस से
खाने के समय सुन लेती हो मेरी
दिन भर की बोरिंग पॉलिटिक्स की बातें
अंत में पूछती हो
आज का खाना कैसा था ?
तब कही याद आता है
आज ख़ीर बनाई थी
मैं ख़ीर की प्रशंसा करने लगता हूँ
तब तुम कुछ समझकर हंस देती हो
खीर की मिठास धीरे धीरे घर में
घुलने लगती है 

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